Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- २४

                                                         भाग :- २४


चौबीसवां  अध्याय शुरू 👇


सिमना रेस्टोरेंट .......


रात के करीब आठ बजे का  समय 👇


"हम सब अपने जीवन में  कभी ना कभी किसी ना किसी ऐसे इंसान से अवश्य मिलते हैं  जो अपने काम को लेकर इतना गंभीर रहता है जिसकी  कोई हद नही होती। सब कुछ सही तरीके से सोच - समझकर चलने वाला इंसान।  अक्सर देखा गया है कि ऐसी प्रवृत्ति के लोगों के जीवन में हंसी-मजाक के लिए कोई स्थान ही नहीं होता है। किसी के यहां उसके बुलाने पर सपरिवार जाना, सप्ताह या महीने में समय निकाल कर अपने बीवी - बच्चों के साथ  घूमना-फिरने में  भी इनको कोई दिलचस्पी नहीं होती है। ऐसे ही लोगों की श्रेणी में मेरा बेटा, तेरा पति और तुम्हारे पिता का नाम आता है। अरे.... है नही था क्योंकि अब तो
वह बदल रहा है। उसकी बदलती सोच का परिणाम ही तो है जो हम सभी एक साथ बाहर खाना खाने आए है।"  नारायण ठाकुर की माॅं ने अपनी बहू और दोनों पोते की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए कहा।


दादी की बात सुनकर ऋषभ ने अपनी नजरें चारों तरफ दौड़ाई। उसकी नजर अपने पिता को ढूंढ रही थी। नजरों की तलाश जल्द ही उस वक्त पूरी हो गई जब उसने देखा कि उसके पिता रेस्टोरेंट में  बाई ओर बने बार की कुर्सी पर बैठे किसी से बात कर रहे है। अपने पिता को देखने के बाद ऋषभ ने अपनी नजर दादी पर टिकाने के बाद कही 👇


ऋषभ :- दादी! ऐसा चमत्कार जो आज दोपहर बाद हम सबके साथ हो रहा है वों आगे भी होता रहे तो हम सबकी जिंदगी ही बदल जाएं। मैं तो रास्ते भर यही सोचते आ रहा हूॅं कि कही मैं नींद में कोई सुखद स्वप्न तो नहीं देख रहा। मुझे डर इस बात का लग रहा है कि नींद खुलते ही कहीं हम सब वहीं पर ना चले जाएं जहां हम आज तक जी रहें थे।


अपने पोते की बात सुनकर ऋषभ की दादी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा👇


ऋषभ की दादी :- जो तू सोच रहा है वो मेरे मन में पहले भी आ चुका है लेकिन ना जाने क्यों मुझे इस पर विश्वास है कि मेरा बेटा बदल रहा है, उसे अपनों की कद्र हो रही है। उसे आज तुम लोगों को अपने अनुभव बताते हुए सुनकर कानों को पहले तो  विश्वास बिल्कुल भी नहीं हुआ लेकिन जब ऑंखों देखी बात सामने थी तो उस पर विश्वास मैं कैसे ना करती? वही ऑंखों देखा विश्वास बार-बार मुझे यही कह रहा है कि अब मेरा बेटा पहले की तरह नहीं रहा और ना होना चाहता है। पहले जो उसने गलतियां की है शायद उन गलतियों को सुधारने के मंशे से से ही वह यह सब कर रहा है। मैं  उस पर की गई अपनी गलतियों को सुधार तो नहीं सकती लेकिन उसका मरहम बनने की कोशिश अवश्य करूंगी। मैंने भी उसे कम नहीं सुनाया है और तो और  मैंने तो उसका दिल ही तोड़ दिया जिसका एहसास मुझे हो रहा है कि मेरा सबसे बड़ा पाप है यह। दो दिलों को अलग करने का पाप मैंने किया था। शायद! इसी की सजा ईश्वर मेरे परिवार को इस रूप में दे रहे थे लेकिन ईश्वर से सिर्फ एक ही शिकायत है कि यदि गलती मुझसे हुई थी तो इसकी सजा मुझे देनी चाहिए थी ना कि मेरे परिवार को।


ऋषभ की दादी बोलते - बोलते  सिसकने लगी। अपनी दादी की ऑंखों में ऑंसू देखकर ऋषभ ने उनके हाथ को अपने हाथ में लिया और कहने लगा 👇


ऋषभ :-  दादी! आपने कोई गलती नहीं की थी। परिस्थितियों के हिसाब से निर्णय लेना कोई गलती नहीं कही जाती। आप उस घर की बड़ी है आप निर्णय ले सकती थी और आपने जो आपको उचित लगा वह निर्णय लिया। आप उस समय की गलती के लिए आज शर्मिंदा है लेकिन सोचो दादी! इसकी क्या गारंटी है कि यदि पापा की जिंदगी में वह आ जाती जिनसे वे प्यार करते थे तो उनका जीवन खुशियों से भरा होता।  जीवन तो सुख - दुख के मिश्रण का नाम है। पापा उसके बाद भी खुश रह सकते थे क्योंकि यह उनके हाथ में था। मैंने माॅं जैसी प्यार करने वाली पत्नी तो अपनी जिंदगी में अभी तक नहीं देखी। मुझे तो गर्व है कि ईश्वर ने मुझे इनकी कोख से जन्म दिया। इनको देखकर प्यार के बारे में मेरी एक राय यह बनी है कि प्यार सिर्फ पाने का ही नाम नहीं है, प्यार में तो  हम जिससे प्यार करते हैं उसकी खुशी ही हमारे लिए सर्वोपरि होती है। पापा की खुशी हमारी माॅं  के लिए कितनी  सर्वोपरि है?  यह मुझे आपको बताने की जरूरत नहीं है, यह तो परिवार के एक-एक सदस्य को पता है। छोटी-छोटी खुशियों में खुश हो जाना यह बखूबी जानती है। पापा की खुशी में अक्सर मैंने इन्हें खुश होते हुए देखा है। भले ही पापा उस खुशी में इन्हें शामिल करें या ना करें फिर भी ये उनकी खुशी में चुपचाप खुद को शामिल कर ही लेती थी। मेरी माॅं तो ऐसी है जो अपने लिए जीती ही नहीं। अपने पति और इस परिवार के लिए ही अपना जीवन समर्पित कर दिया है इन्होंने। पूजा भी करती है तो परिवार की सलामती की ही प्रार्थना इनके होठों पर रहती है।


अपनी दादी से यह सब कहने के बाद ऋषभ अपनी माॅं  की तरफ देखता है और उससे यह देखकर बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं होता है कि उसकी माॅं की ऑंखों में अनगिनत  ऑंसू तैर  रहे है। अपने बेटे को अपनी तरफ देखते हुए ऋषभ की माॅं  रेणुका अपने साड़ी के कोर से अपनी ऑंखों में आए उन ऑंसूओं को पोंछने  लगती है जो अपने बड़े बेटे ऋषभ की बातें सुनकर भावावेश में आ गए  थे।


चुपचाप कुर्सी पर बैठा ऋषभ का छोटा भाई ऋषि इन सभी दृश्यों को देख और सुन रहा है।  वह भी अपनी दादी और अपने भाई  दोनों की  ही बात  से सहमत है लेकिन उसमें अभी इतनी समझ नहीं है कि वह तुलना कर सकें कि किसकी बात सही है। दादी और अपनी माॅं को साड़ी के ऑंचल से अपने ऑंसुओं को पोंछते देखकर उससे रहा नहीं जा रहा, वह उन दोनों की तरफ से बारी - बारी से देखते हुए कह रहा है 👇


ऋषि :- दादी और माॅं  यदि इन दोनों के बीच ऑंसू गिराने  की प्रतियोगिता हुई तो दोनों ही एक - दूसरे से कम नहीं है।  मुझे तो यह लगता है कि दोनों ही इसमें विजय होंगी।
दोनों को ही अपने ऑंसुओं पर नियंत्रण नहीं है, दोनों ही छोटी-छोटी बातों पर रो पड़ती है। इतना रोना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है। अरे हाॅं! सेहत से याद आया कि शरीर को भूख भी लग रही है पर पापा ना जाने क्या बातें कर रहे है? उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही है। यदि उनकी बातें खत्म हो तो हम सब खाना मंगवा ले।


ऋषि की बातें सुनकर सभी उसकी तरफ देखते है। भूख तो सभी को लग रही थी लेकिन सब इंतजार नारायण ठाकुर के साथ - साथ  उस परिवार का भी कर रहे थे जिनके साथ आज उन्हें खाना खाना था। सभी की नजरें रेस्टोरेंट के अंदर बने बार  के उसी  तरफ है जहां पर नारायण ठाकुर अपने कारोबारी मित्र के साथ बैठे बातचीत कर रहे कर रहे हैं तभी ऋषभ की नजर रेस्टोरेंट के उस दरवाजे पर पड़ती है जहां से पंद्रह मिनट पहले वें  सभी अंदर आए थे। उसके बाद तो हर बीतता पल ऋषभ के दिल की धड़कन बढ़ा रहा था।


किसे देखकर ऋषभ  के दिल की धड़कन बढ़ गई थी और  आगे क्या होने वाला है?  ये सब जानने के लिए जुड़े रहे इसके अगले अध्याय से।


क्रमशः


गुॅंजन कमल 💓💞💗


# उपन्यास लेखन प्रतियोगिता 


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4 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 03:03 PM

Nice

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Pratikhya Priyadarshini

27-Sep-2022 02:41 PM

Bahut khoob 💐👍

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Mohammed urooj khan

27-Sep-2022 12:30 PM

बहुत खूबसूरत भाग

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